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Hindi Stories(कहानियाँ ) Part-3

Hindi Stories(कहानियाँ ) Part-3

खुशी कैसे हासिल करें


क्या आप जानते हैं कि दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक, हार्वर्ड में, सबसे लोकप्रिय और सफल पाठ्यक्रम आपको सिखाता है कि खुश रहना कैसे सीखें?

बेन शाहर द्वारा पढ़ाया जाने वाला सकारात्मक मनोविज्ञान प्रति सेमेस्टर 1400 छात्रों को आकर्षित करता है और 20% हार्वर्ड स्नातक(graduate) इस वैकल्पिक पाठ्यक्रम को लेते हैं। बेन शाहर के अनुसार वह पाठ्यक्रम जो खुशी, आत्मसम्मान और प्रेरणा पर केंद्रित होता है छात्रों को सफल होने और अधिक आनंद के साथ जीवन का सामना करने के लिए प्रेरित करता है। 

यह 45 वर्षीय शिक्षक, जिसे कुछ लोग "खुशी का गुरु" मानते हैं नें अपनी व्यक्तिगत स्थिति की गुणवत्ता में सुधार लाने और सकारात्मक जीवन में योगदान देने के लिए अपनी कक्षा में प्रमुख सुझावों पर प्रकाश डाला ; जो निम्नलिखित हैं:-

आपके पास जो कुछ भी है उसके लिए भगवान का धन्यवाद करें
आपके जीवन में ऐसी 10 चीजें लिखें जो आपको खुशी देती हैं। अच्छी बातों पर ध्यान दें!

शारीरिक गतिविधियों का अभ्यास करें
विशेषज्ञों का कहना है कि व्यायाम करने से मूड बेहतर होता है। 30 मिनट का व्यायाम उदासी और तनाव के खिलाफ सबसे अच्छा साधन है।

नाश्ता
कुछ लोग समय की कमी या मोटा न होने के कारण नाश्ता करना छोड़ देते हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि नाश्ता आपको ऊर्जा देता है, आपको सोचने और अपनी गतिविधियों को सफलतापूर्वक करने में मदद करता है।

मुखरता
 यदि आप किसी के विचारों से सहमत नहीं है तो उससे साफ पूछें कि वे क्या चाहते हैं, और अपने बारे में भी बताएँ कि आप क्या सोचते हैं। मुखर होना आपके आत्म-सम्मान को बेहतर बनाने में मदद करता है। छोड़ दिया जाना और चुप रहना उदासी और निराशा पैदा करता है।

अपना पैसा अनुभवों पर खर्च करें
 एक अध्ययन में पाया गया कि 75% लोगों ने यात्रा, पाठ्यक्रम और कक्षाओं में अपना पैसा लगाने पर खुशी महसूस की; जबकि केवल बाकी लोगों ने कहा कि चीजें खरीदते समय उन्हें खुशी महसूस होती है।

अपनी चुनौतियों का सामना करें
अध्ययनों से पता चलता है कि जितना अधिक आप किसी चीज को टालते हैं, उतनी ही अधिक चिंता और तनाव पैदा करते हैं। कार्यों की साप्ताहिक लघु सूचियाँ लिखें और उन्हें पूरा करें।

हर जगह अपने प्रियजनों की अच्छी यादें उनके द्वारा की गई सकारात्मक टिप्पणियाँ और फोटो लगाएँ
अपने फ्रिज, अपने कंप्यूटर, अपने डेस्क, अपने कमरे, अपने जीवन को खूबसूरत यादों से भर दें।

हमेशा दूसरों का अभिवादन करें और उनके साथ अच्छा व्यवहार करें। 100 से अधिक लोगों से पूछताछ में कहा गया है कि सिर्फ मुस्कुराने से मूड बदल जाता है।

आरामदायक जूते पहनें
यदि आपके जूते आपको चोट पहुँचाते हैं, तो आप आरामदायक महसूस नहीं करते हैं तो आप हताशा का अनुभव करने लगते हैं ऐसा अमेरिकन ऑर्थोपेडिक्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. कींथ वैपनर कहते हैं।

अपनी मुद्रा का ध्यान
रखें एकअपने कंधों को थोड़ा पीछे की ओर करके सीधे चलें फिर सामने का दृश्य एक अच्छे मूड को बनाए रखने में मदद करता है।

संगीत सुनें
ईश्वर की स्तुति करें,  यह सिद्ध है कि संगीत सुनने से आप गाने के लिए तत्पर हो जाते हैं, इससे आपका जीवन सुखमय हो जाता है।

हितकर भोजन: अपने भोजन में बदलाव करें , वही खाएँ जो आपके के लिए हितकर हो।

अपना ख्याल रखें और आकर्षक महसूस करें
 एक सर्वे के दौरान 70% लोगों का कहना है कि जब उन्हें लगता है कि वे अच्छे दिखते हैं तो उन्हें खुशी महसूस होती है।

 ईश्वर में दिल से विश्वास करें: उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है!

अच्छे सेंस ऑफ ह्यूमर का विकास करें
विभिन्न मामलों पर हँसना सीखें, खासकर जब चीजें आपके लिए सही नहीं हो रही हों।


खुशी एक रिमोट कंट्रोल की तरह होती है, जिसे हम हर बार खो देते हैं, हम उसकी तलाश में पागल हो जाते हैं और कई बार बिना जाने हम उसके ऊपर बैठे रहते है।

आज भी सज्जन लोग हैं।

रात  तक़रीबन नौ बजे ऑफिस से लौटने के क्रम में प्रफुल्ल बाबू की चमचमाती मर्सिडीज कार जैसे ही उनके घर के मुख्य फाटक में घुसी, ड्यूटी पर तैनात सुरक्षाकर्मी तेज़ी से दौड़कर उनके पास पहुंचा औऱ उन्हें सैल्यूट करते हुए कहा- “साहब ! एक महिला आपके लिए लिखी गई किसी व्यक्ति की एक चिट्ठी लेकर जाने कब से यहाँ भटक रही है औऱ बार बार आपसे मिलने का अनुरोध कर रही है। मेरे मना करने के बाद भी यहाँ से जा ही नहीं रही है! उसके साथ उसका एक छोटा बच्चा भी है।

प्रफुल्ल जी ने गार्ड की बातों को सुनकर आश्चर्य से उस महिला को अपने पास बुलाया औऱ उससे जानना चाहा- "आप कहाँ से आई है और मुझसे क्यों मिलना चाहती हैं? किसने मुझें ये चिट्ठी लिखी है?”

कंपकपाते हाथों से महिला ने बिना कुछ ज़्यादा बोले प्रफुल्ल जी को एक चिट्ठी पकड़ाई औऱ फ़िर मद्धिम आवाज़ में सिसकते हुए बोली- "साहब ! मैं अभागन बड़ी भयानक मुसीबत में हूँ, तत्काल आपकी मदद चाहिए, आपके पिताजी ने मुझें ये चिट्ठी देकर आपके पास भेजा है। मेरा इकलौता बेटा बहुत बीमार है। इसे किसी भी तरह किसी सरकारी अस्पताल में भर्ती करवा दीजिए। आपका जीवन भर उपकार रहेगा। गांव में इसके इलाज की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण मज़बूरी में मैं आपके पास आई हूँ "

चिट्ठी देते हुए महिला प्रफुल्ल जी के सामने अपने दोनों हाथ जोड़कर खड़ी हो गई

प्रफुल्ल जी ने उस चिट्ठी को ध्यान से पढ़ा और कुछ पल के बाद अत्यंत गंभीर शांत हो गए।

उसके बाद वे मैली कुचैली साड़ी पहनी क़भी उस महिला की तरफ़ देखते तो क़भी उस चिट्ठी की तरफ़।

कुछ देर तक गहरी चिंता में प्रफुल्ल बाबू निमग्न हो कुछ सोचते रहे।

 दरअसल उस चिट्ठी के साथ-साथ वो महिला अपने गंभीर रूप से बीमार बच्चे को लेकर उनके पास इलाज़ हेतु मदद के लिए अपने गांव से शहर पहुँची थी।

प्रफुल्ल जी ने उसी क्षण अपने सुरक्षाकर्मी को बोलकर उस महिला औऱ उसके बीमार बच्चे के लिए अपने आउट गेस्ट रूम में रहने का प्रबंध करवाया औऱ फ़िर वहीं कुछ देर बाद दोनों के लिए भोजन की व्यवस्था की।

महिला ने पुनः उनसे विनती करते हुए कहा- "साहब ! भगवान के लिए मेरी सहायता कीजिए! मेरे इकलौते बीमार बच्चे को किसी सरकारी अस्पताल में भर्ती करवा दीजिए, नहीं तो इसका बचना मुश्किल है "

महिला बोलते बोलते उनके पैरों पर गिर पड़ी।

"अरे माताजी ऐसा मत कीजिए,आप मेरी मां समान हैं, आप चिंता मत कीजिए, सब ठीक हो जाएगा।" प्रफुल्ल बाबू ने उसका धैर्य बढ़ाया।

इतने में रात के सन्नाटे को चीरती हॉर्न बजाती हुई एक दूसरी गाड़ी तेज़ी से घर के अंदर घुसी औऱ कुछ पल बाद ही एक डॉक्टर वहाँ उपस्थित हुए

"आईए डॉक्टर साहब ये बच्चा बीमार है, इसको ज़रा पूरी गंभीरता से देखकर कर इसकी चिकित्सा शुरू कीजिए।प्रफुल्ल जी ने कहा।

डॉक्टर बाबू ने बिना कोई समय गंवाए लगभग बीस मिनट तक उस बच्चे का गहन निरीक्षण किया औऱ फ़िर कुछ जाँच करवाने के साथ-साथ कुछ दवाईयों की पर्ची भी वहाँ खड़े प्रफुल्ल बाबू के हाथों में पकड़ा दी।

"ये कुछ दवाइयां औऱ इंजेक्शन मेडिकल स्टोर से तत्काल मंगा लीजिए मरीज को अभी देने हैं और मैं अपने साथ जांच के लिए इस बच्चे का रक्त नमूना लेकर जा रहा हूँ , जांच की रिपोर्ट लेकर कल फ़िर आऊंगा।" डॉक्टर ने प्रफुल्ल बाबू से कहा औऱ फिर वहां से निकल गए।

प्रफुल्ल बाबू ने डॉक्टर की पर्ची औऱ कुछ पैसे अपने ड्राइवर को पकड़ाते हुए उसे तुरंत सारी दवाइयां लाने का निर्देश दिया औऱ फ़िर अपने घर के अंदर जाने के लिए वहाँ से गलियारे की ओर मुड़े।

"साहब बस आप मेरे बच्चे को किसी सरकारी अस्पताल में भर्ती करा देते , मैं ग़रीब कहाँ से दे पाऊँगी इलाज़ के इतने पैसे ? मेरे पास तो रहने-खाने तक के भी पैसे नहीं हैं।" महिला गिड़गिड़ाई

"माता जी ! अब आप निश्चिंत रहें औऱ जाकर आराम करें , रात बहुत हो चुकी है " इतना कहकर प्रफुल्ल बाबू वहां से निकल अपने घर के अंदर प्रवेश कर गए।

 सुबह डॉक्टर बाबू बच्चे की तमाम रिपोर्ट के साथ फ़िर गये और उसे एक दो इंजेक्शन तथा कुछ दवाइयां दीं

अपने ऑफिस जाने से ठीक पहले प्रफुल्ल बाबू ने भी बीमार बच्चे के साथ-साथ, उस महिला के लिए अच्छी तरह से खाने पीने की व्यवस्था करा दी और सबको उन दोनों का ध्यान रखने के लिए निर्देशित कर वहाँ से चले गए।

डॉक्टर बाबू अब नियमित रूप से आकर उस बीमार बच्चे की जाँच करते औऱ साथ ही सही ढंग से उसकी चिकित्सा भी।

लगभग एक महीने के बाद जब बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ हो गया तो महिला प्रफुल्ल बाबू के सामने जाकर बोली- "साहब, मेरा बच्चा बिलकुल ठीक हो चुका है, हम अब वापस अपने गांव जाना चाहते हैं। आपने जो मेरे लिए किया उसके लिए मैं जीवन भर आपका औऱ आपके पिता कृष्णकांत जी का उपकार कभी नहीं भूलूंगी।"

जब महिला अपने बच्चे के साथ वहाँ से विदा होने लगी तो प्रफुल्ल बाबू ने कुछ रुपयों के साथ दोनों को नए कपड़े औऱ दो जोड़ी नए चप्पल उपहार स्वरूप दी औऱ साथ ही उसे एक चिट्ठी भी देते हुए कहा कि "इसे उन पिता जी को दे दीजिएगा, जिन्होंने आपको यहाँ भेजा था "

 महिला हाथ जोड़कर कृतज्ञता का भाव प्रकट करते हुए उन्हें लगातार अनगिनत आशीर्वाद देती वहाँ से चल पड़ी

ठीक दूसरे ही दिन अपने गाँव पहुँच कृष्णकांत जी को वह चिट्ठी देते हुए महिला उनसे प्रफुल्ल जी की बहुत तारीफ़ करने लगी ! “बाबा ! आपका बेटा तो देवता है देवता ! कितना ख़याल रखा हमारा ऐसा बेटा किस्मत वाले को ही नसीब होता है, ऊपरवाला उन्हें औऱ उनके समूचे परिवार को हमेशा सुखी रखे

कृष्णकांत जी उस चिट्ठी को पढ़कर ठगे से रह गए, उसमें लिखा था-

परम आदरणीय बाबू जी ! मैं आपको नहीं जानता, औऱ ही क़भी आपसे मिला हूँ। लेकिन अब आपका बेटा इस पते पर नहीं रहता कुछ महीने पहले ही उसने ये मकान बेच दिया है। अब मैं यहाँ रहने लगा हूँ, पर मुझे भी आप अपना बेटा ही समझिए।

बचपन से ही मुझे, अपने पिता का सुख नहीं मिला, मॉ ने ही पाल-पोस कर बड़ा किया है।

मैंने जब आपका पत्र पढ़ा, तो मुझें ऐसा लगा कि जैसे मेरे सगे पिता ने मुझें कुछ करने के लिए आदेश दिया है।

आप कृपया इन माताजी से कुछ मत कहिएगा। आपकी वजह से मुझे इन माताजी के द्वारा जितना आशीर्वाद और जितनी शुभकामनाएं मिली हैं, उस उपकार के लिए मैं आपका आभारी और ऋणी रहूँगा सादर प्रणाम।

आपका धर्म पुत्र,

प्रफुल्ल शर्मा

कुछ बेहद ख़ामोश लम्हों के बाद कृष्णकांत जी का सिर कुछ सोचकर ख़ुद  ख़ुद उस अनजान सज्जन व्यक्ति के सम्मान में झुक गया औऱ उनकी आंखें तो नम थीं ही।

 उनके पुत्र ने चुपके से मकान बेचकर जिन परेशानियों से बचना चाहा थाउन्हीं परेशानियों को एक अनजान पवित्र आत्मा ने अपने लिए वरदान समझ अपनाया और उनका सम्मान सुरक्षित रखा। धन्य है उसका संस्कार।


सच्ची मित्रता

वह एक छोटी-सी झोपड़ी थी। एक छोटा-सा दिया झोपड़ी के एक कोने में रखा अपने प्रकाश को दूर-दूर तक फैलाने की कोशिश कर रहा था। लेकिन एक कोने तक ही उसकी रोशनी सीमित होकर रह गयी थी। इस कारण झोपड़ी का अधिकतर भाग अंधकार में डूबा था। फिर भी उसकी यह कोशिश जारी थी, कि वह झोपड़ी को अंधकार रहित कर दे।

झोपड़ी के कोने में टाट पर दो आकृतियां बैठी कुछ फुसफुस कर रही थी। वे दोनों आकृतियां एक पति-पत्नी थे।

पत्नी ने कहा– “स्वामी ! घर का अन्न जल पूर्ण रूप से समाप्त है, केवल यही भुने चने हैं।”

पति का स्वर उभरा– “हे भगवान ! यह कैसी महिमा है तेरी, क्या अच्छाई का यही परिणाम होता है।”

“हूं” पत्नी सोच में पड़ गयी। पति भी सोचनीय अवस्था में पड़ गया।

काफी देर तक दोनों सोचते रहे। अंत में पत्नी ने कहा– “स्वामी ! घर में भी खाने को कुछ नहीं है। निर्धनता ने हमें चारों ओर से घेर लिया है। आपके मित्र कृष्ण अब तो मथुरा के राजा बन गये हैं, आप जाकर उन्हीं से कुछ सहायता मांगो।”

पत्नी की बात सुनकर पति ने पहले तो कुछ संकोच किया। पर फिर पत्नी के बार-बार कहने पर वह द्वारका की ओर रवाना होने पर सहमत हो गया।

सुदामा नामक उस गरीब आदमी के पास धन के नाम पर फूटी कौड़ी भी ना थी, और ना ही पैरों में जूतियां।

मात्र एक धोती थी, जो आधी शरीर पर और आधी गले में लिपटी थी। धूल और कांटो से भरे मार्ग को पार कर सुदामा द्वारका जा पहुंचा।

जब वह कृष्ण के राजभवन के द्वार पर पहुंचा, तो द्वारपाल ने उसे रोक लिया।

सुदामा ने कहा– “मुझे कृष्ण से मिलना है।”

द्वारपाल क्रूद्र होकर बोला– “दुष्ट महाराज कृष्ण कहो।”

सुदामा ने कहा– “कृष्ण ! मेरा मित्र है।”

यह सुनते ही द्वारपाल ने उसे सिर से पांव तक घुरा और अगले ही क्षण वह हंस पड़ा।

“तुम हंस क्यों रहे हो” सुदामा ने कहा।

“जाओ कहीं और जाओ, महाराज ऐसे मित्रों से नहीं मिलते” द्वारपाल ने कहा और उसकी ओर से ध्यान हटा दिया।

किंतु सुदामा अपनी बात पर अड़े रहे।

द्वारपाल परेशान होकर श्री कृष्ण के पास आया और उन्हें आने वाले की व्यथा सुनाने लगा।

सुदामा का नाम सुनकर कृष्ण नंगे पैर ही द्वार की ओर दौड़ पड़े।

द्वार पर बचपन के मित्र को देखते ही वे फूले न समाये। उन्होंने सुदामा को अपनी बाहों में भर लिया और उन्हें दरबार में ले आये।

उन्होंने सुदामा को अपनी राजगद्दी पर बिठाया। उनके पैरों से काटे निकाले पैर धोये।

सुदामा मित्रता का यह रूप प्रथम बार देख रहे थे। खुशी के कारण उनके आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।

और फिर कृष्ण ने उनके कपड़े बदलवाये। इसी बीच उनकी धोती में बंधे भुने चनों की पोटली निकल कर गिर पड़ी। कृष्ण चनो की पोटली खोलकर चने खाने लगे।

द्वारका में सुदामा को बहुत सम्मान मिला, किंतु सुदामा फिर भी आशंकाओं में घिरे रहे। क्योंकि कृष्ण ने एक बार भी उनके आने का कारण नहीं पूछा था। कई दिन तक वे वहा रहे।

और फिर चलते समय भी ना तो सुदामा उन्हें अपनी व्यथा सुना सके और ना ही कृष्ण ने कुछ पूछा।

वह रास्ते भर मित्रता के दिखावे की बात सोचते रहे।

सोचते सोचते हुए वे अपनी नगरी में प्रवेश कर गये। अंत तक भी उनका क्रोध शांत न हुआ।

किंतु उस समय उन्हें हेरानी का तेज झटका लगा। जब उन्हें अपनी झोपड़ी भी अपने स्थान पर न मिली।

झोपड़ी के स्थान पर एक भव्य इमारत बनी हुयी थी। यह देखकर वे परेशान हो उठे। उनकी समझ में नहीं आया, कि यह सब कैसे हो गया। उनकी पत्नी कहां चली गयी।

सोचते-सोचते वे उस इमारत के सामने जा खड़े हुये। द्वारपाल ने उन्हें देखते ही सलाम ठोका और कहा– “आइये मालिक।”

यह सुनते ही सुदामा का दिमाग चकरा गया।

“यह क्या कह रहा है” उन्होंने सोचा।

तभी द्वारपाल पुन: बोला – “क्या सोच रहे हैं, मालिक आइये न।”

“यह मकान किसका है” सुदामा ने अचकचाकर पूछा।

“क्या कह रहे हैं मालिक, आप ही का तो है।”

तभी सुदामा की दृष्टि अनायांस ही ऊपर की ओर उठती चली गयी। ऊपर देखते ही वह और अधिक हैरान हो उठे। ऊपर उनकी पत्नी एक अन्य औरत से बात कर रही थी।

उन्होंने आवाज दी–

अपना नाम सुनते ही ऊपर खड़ी सुदामा की पत्नी ने नीचे देखा और पति को देखते ही वह प्रसन्नचित्त होकर बोली– “आ जाइये, स्वामी! यह आपका ही घर है।”

यह सुनकर सुदामा अंदर प्रवेश कर गये।

पत्नी नीचे उतर आयी तो सुदामा ने पूछा– “यह सब क्या है।”

पत्नी ने कहा– “कृष्ण! कृपा है, स्वामी।”

“क्या” सुदामा के मुंह से निकला। अगले ही पल वे सब समझ गये। फिर मन ही मन मुस्कुराकर बोले– “छलिया कहीं का।”

शिक्षा:- मित्रों! मित्र वही है जो मित्र के काम आये। असली मित्रता वह मित्रता होती है जिसमें बगैर बताये, बिना एहसान जताये, मित्र की सहायता इस रूप में कर दी जाये कि मित्र को भी पता ना चले। जैसा उपकार श्री कृष्ण ने अपने बाल सखा सुदामा के साथ किया।

 

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