Featured Posts

Hindi Stories(कहानियाँ ) Part-2

Hindi Stories(कहानियाँ ) Part-2

स्वाभिमान

शाम लगभग साढ़े छह बजे थे। वही हॉटेल, वही किनारे वाली टेबल और वही चाय, शाम की हल्की ठंडक के साथ साथ चाय की चुस्की ले रहा था।

उतने में ही सामने वाली टेबल पर एक आदमी अपनी नौ-दस साल की लड़की को लेकर बैठ गया।

उस आदमी का शर्ट फटा हुआ था, ऊपर की दो बटने गायब थी। पैंट भी मैला ही था, रास्ते पर खुदाई का काम करने वाला मजदूर जैसा लग रहा था।

लड़की का फ्रॉक धुला हुआ था और उसने बालों में वेणी भी लगाई हुई थी।

उसका चेहरा अत्यंत आनंदित था और वो बड़े कुतूहल से पूरे हॉटेल को इधर-उधर से देख रही थी।


उनके टेबल के ऊपर ही चल रहे पँखे को भी वो बार-बार देख रही थी, जो उनको ठंडी हवा दे रहा था।

बैठने के लिये गद्दी वाली कुर्सी पर बैठकर वो और भी प्रसन्न दिख रही थी।

उसी समय वेटर ने दो स्वच्छ गिलासों में ठंडा पानी उनके सामने रखा।

उस आदमी ने अपनी लड़की के लिये एक डोसा लाने का आर्डर दिया।

यह आर्डर सुनकर लड़की के चेहरे की प्रसन्नता और बढ़ गई।

और तुमको? वेटर ने पूछा।

नहीं, मुझे कुछ नहीं चाहिये, उस आदमी ने कहा।

कुछ ही समय में गर्मागर्म बड़ा वाला,फुला हुआ डोसा आ गया, साथ में चटनी-सांभार भी।

लड़की डोसा खाने में व्यस्त हो गई.और वो उसकी ओर उत्सुकता से देखकर पानी पी रहा था।

इतने में उसका फोन बजा.वही पुराना वाला फोन.उसके मित्र का फोन आया था,वो बता रहा था कि आज उसकी लड़की का जन्मदिन है और वो उसे लेकर हॉटेल में आया है।

वह बता रहा था कि उसने अपनी लड़की को कहा था कि यदि वो अपनी स्कूल में पहले नंबर लेकर आयेगी तो वह उसे उसके जन्मदिन पर डोसा खिलायेगा।

और वो अब डोसा खा रही है।

नहीं रे,हम दोनों कैसे खा सकते हैं? हमारे पास इतने पैसे कहां है? मेरे लिये घर में बेसन-भात बना हुआ है ना।

उसकी बातों में व्यस्त रहने के कारण मुझे गर्म चाय का चटका लगा और मैं वास्तविकता में लौटा।

कोई कैसा भी हो, अमीर या गरीब, दोनों ही अपनी बेटी के चेहरे पर मुस्कान देखने के लिये कुछ भी कर सकते हैं।

मैं उठा और काउंटर पर जाकर अपनी चाय और दो डोसा के पैसे दिये और कहा कि उस आदमी को एक और डोसा दे दो उसने अगर पैसे के बारे में पूछा तो उसे कहना कि हमनें तुम्हारी बातें सुनी आज तुम्हारी बेटी का जन्मदिन है और वो स्कूल में पहले नंबर पर आई है..

इसलिये हॉटेल की ओर से यह तुम्हारी लड़की के लिये ईनाम उसे आगे चलकर इससे भी अच्छी पढ़ाई करने को बोलना..

*परन्तु, परंतु भूलकर भी "मुफ्त" शब्द का उपयोग मत करना,उस पिता के "स्वाभिमान" को चोट पहुचेंगी..*

होटल मैनेजर मुस्कुराया और बोला कि यह बिटिया और उसके पिता आज हमारे मेहमान है, आपका बहुत-बहुत आभार कि आपने हमें इस बात से अवगत कराया।

उनकी आवभगत का पूरा जिम्मा आज हमारा है आप यह पुण्य कार्य और किसी अन्य जरूरतमंद के लिए कीजिएगा।

वेटर ने एक और डोसा उस टेबल पर रख दिया,मैं बाहर से देख रहा था..

उस लड़की का पिता हड़बड़ा गया और बोला कि मैंने एक ही डोसा बोला था..

तब मैनेजर ने कहा कि,अरे तुम्हारी लड़की स्कूल में पहले नंबर पर आई है..

इसलिये ईनाम में आज हॉटेल की ओर से तुम दोनों को डोसा दिया जा रहा है,

*उस पिता की आँखे भर आई और उसने अपनी लड़की को कहा,देखा बेटी ऐसी ही पढ़ाई करेंगी तो देख क्या-क्या मिलेगा.*.

उस पिता ने वेटर को कहा कि क्या मुझे यह डोसा बांधकर मिल सकता है?

यदि मैं इसे घर ले गया तो मैं और मेरी पत्नी दोनों आधा-आधा मिलकर खा लेंगे,उसे ऐसा खाने को नहीं मिलता...

जी नहीं श्रीमान आप अपना डोसा यहीं पर खाइए।

आपके घर के लिए मैंने 3 डोसे और मिठाइयों का एक पैक अलग से बनवाया है।

आज आप घर जाकर अपनी बिटिया का बर्थडे बड़ी धूमधाम से मनाइएगा और मिठाईयां इतनी है कि आप पूरे मोहल्ले को बांट सकते हो।

यह सब सुनकर मेरी आँखे खुशी से भर आई,

मुझे इस बात पर पूरा विश्वास हो गया कि जहां चाह वहां राह है....... *अच्छे काम के लिए एक कदम आप आगे तो बढ़ाइए,*

फिर देखिए आगे आगे होता है क्या..!!


सम्मान निधि


माँ, तुम भी न ...यह क्या पिताजी की जरा सी 12000 रुपये की पेंशन के लिए इतना माथापच्ची कर रही हो, अरे इससे ज़्यादा तो हम तनख्वाह पेमेंट में एक कर्मचारी को दे देतें हैं..


मोहित ने चिढ़कर अपनी माँ के साथ स्टेट बैंक की लंबी कतार में लगने की बजाय माँ को घर वापस घर पर ले जाने के लिए आग्रह करने लगा।


वैसे मोहित ने सच ही कहा था, करोड़ों का बिजनेस था उनका, लाखों रुपये तो साल भर में यूँ ही तनख्वाह और भत्ते के नाम पर कर्मचारियों पर निकल जाते हैं, फ़िर मात्र 12000 रुपये प्रतिमाह की पेंशन पाने के लिये, स्टेट बैंक की लम्बी कतार में खड़े होकर पेंशन की औपचारिकता पूर्ण करने के लिये इतना समय व्यर्थ करने का क्या औचित्य ??


मोहित के पिता विशम्भरनाथ जी का निधन पिछले माह ही बीमारी की वजह से हुआ था, वह लगभग 12 वर्ष पूर्व एक सरकारी स्कूल में प्राध्यापक पद से रिटायर हुये थे , तब से उनके नाम पर पेंशन आया करती थी, विशम्भर नाथ जी मृत्यु के उपरांत आधी पेंशन उनकी पत्नी सरला जी को मिलने का शासकीय योजना के अनुसार प्रावधान था, जिसके लिये सरला जी आज स्टेट बैंक में अपने बेटे मोहित के साथ जाकर पेंशन की औपचारिकता पूर्ण करने आई हुई थी।

उस दिन मोहित के बेटे कुशाग्र का आठवां जन्मदिन था, उसने अपनी दादी से साइकिल की फ़रमाइश की थी, सरला के खुद के बैंक अकाऊंट में पैसे नाममात्र के ही बचे थे, उनकी पेंशन अभी शुरू नहीं हुई थी..इसलिए उन्होंने मोहित से 10000 हज़ार रुपये माँगें... मोहित अपने ऑफिस जाने की तैयारी में व्यस्त था, उसने अचानक माँ के द्वारा दस हज़ार रुपये की माँग पर थोड़ा अचरज़ से देखा, फिर अपनी पत्नी श्रेया को माँ को दस हज़ार रुपये देने को कहकर चला गया।


श्रेया ने एक दो बार माँगने पर अपनी सास को दस हजार रुपये देते हुये कहा, "पता नहीं आजकल बहुत मंदी चल रही है, थोड़ा हाँथ सम्हालकर खर्च करना... " हलांकि शाम को जब सरला ने उन पैसों से कुशाग्र की साइकिल खरीदी, तो घर का माहौल पूर्ववत हँसी मज़ाक का हो गया।

अगले हफ्ते मोहित की बड़ी बहन दो दिन के लिए मायके आई थी, जब तक विशम्भरनाथ जी जीवित थे, सरला को कभी पैसे के लिये किसी से पूछना नही पड़ता, वह खुद ही अपनी पेंशन से एक रकम निकाल कर सरला को दे देते थे, मग़र आज बेटी की विदाई के लिए सरला को बहु से पैसे माँगते समय उसके शब्द "पता नहीं आजकल बहुत मंदी चल रही है, थोड़ा हाँथ सम्हालकर खर्च करना..." याद आ गये और बहुत दुःखी मन से बेटी को बिना कुछ दिये ही विदा करने लगी, तब बहु ने खुद आकर सरला के हाथ में 2000 रुपये पकड़ाकर कहा, बेटी को खाली हाथ विदा करेंगी क्या? सरला ने महसूस कर लिया था कि बहु की बात में अपनापन कम उलाहना ज्यादा है।



ऐसा नहीं था कि सरला के जीवन में पैसे का आभाव आ गया हो, उसके इलाज़ के लिए, दवा के लिये, मोबाइल रिचार्ज करना, छोटी मोटी जरूरतों के लिए तो मोहित बिना कुछ कहे ही पैसा लाकर दे देता था, परन्तु इसके इतर सरला को जो भी खर्च करना होता जैसे किसी मंदिर में दान करना, नौकरों को उनकी जरूरत या त्योहार पर पैसा देना या अपने रिश्तेदारों के आने पर उपहार देना जैसे छोटी मोटी जरूरतों के लिए उसे मोहित या बहु से पैसा माँगना स्वाभिमान को चोट करता था।


अभी दो दिन पहले सरला की बहन आई हुई थी, बहन की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी, इसलिए वह सरला से कुछ आर्थिक सहयोग की अपेक्षा कर रही थी, मग़र खुद सरला को छोटे-छोटे खर्चो के लिए बहु की तरफ मुँह देखते देखकर उसने अपनी बहन से कुछ न कहा।


आज जैसे ही उसके मोबाईल पर पहली बार स्टेट बैंक का SMS आया, सरला ने आश्चर्य से मैसेज खोलकर देखा, पिछले छः महीने की पेंशन 72000 रुपये उसके अकाउंट में क्रेडिट होने का मैसेज था वह।

सरला नज़दीक के ATM से 10000 रुपये निकालकर जब सरला घर आ रही थी, उसके आत्मविश्वास और कदमों की चाल ही बता रही थी कि पेंशन को "सम्मान निधि" क्यों कहतें हैं।


अपने करोड़पति बेटे की करोड़ों की दौलत से ज्यादा वजन सरला को अपने पति की पेंशन से मिले 12000 रुपयों में लग रहा था।

गुरु की सेवा 


एक मजदूर नया-नया दिल्ली आया। पत्नी को किराए के मकान मे छोडकर काम की तलाश मे निकला। एक जगह मंदिर में सेवा चल रही थी। कुछ लडकों को काम करते देखा उनसे पूछा, "क्या मैं यहाँ काम कर सकता हूँ?"

लडको ने 'हाँ' कहा।

मजदूर, "तुम्हारे मालिक कहाँ हैं?"

लडको को शरारत सूझी और बोले, "मालिक बाहर गया है। तुम बस काम पर लग जाओ। हम बता देंगे कि आज से लगे हो।"

मजदूर खुश हुआ और काम करने लगा। रोज सुबह समय से आता शाम को जाता। पूरी मेहनत लगन से काम करता। ऐसे हफ्ता निकल गया।

मजदूर ने फिर लडकों से पूछा, "मालिक कब आयेंगे?"

लडकों ने फिर हफ्ता कह दिया। फिर से हफ्ता निकल गया।

मजदूर लडकों से बोला, "भैया आज तो घरपर खाने को कुछ नही। बचा पत्नी बोली कुछ पैसे लाओगे तभी खाना बनेगा। मालिक से हमें मिलवा दो।"

लडकों ने बात अगले दिन तक टाल दी। मगर मजदूर के जाते ही उन्हें अपनी गलती का एहसास होने लगा और उन्होने आखिर फैसला किया कि वो मजदूर को सबकुछ सच सच बता देंगे। ये मंदिर की सेवा है। यहाँ कोई मालिक नहीं। ये तो हम अपने गुरु महाराज जी की सेवा कर रहे हैं।

अगले दिन मजदूर आया तो सभी लडकों के चेहरे उतरे थे। वो बोले, "अंकल जी, हमें माफ कर दो। हम अबतक आपसे मजाक कर रहे थे।"

और सारी बात बता दी।

मजदूर हंसा ओर बोला, "मजाक तो आप अब कर रहे हो। हमारे मालिक तो सचमुच बहुत अच्छे हैं। कल दोपहर मे हमारे घर आये थे। पत्नी को 1 महीने की पगार ओर 15 दिनों का राशन देकर गए। कौन मालिक मजदूर को घर पर पगार देता है, राशन देता है। सचमुच हमारे मालिक बहुत अच्छे हैं।"

और फिर अपने काम पर मेहनत से जुट गया।

लडकों की समझ में आ गया जो बिना स्वार्थ के गुरु की सेवा करता है, गुरू हमेशा उसके साथ रहते हैं और उसके दुख तकलीफ दूर करते रहते हैं।
 


THANKS FOR YOUR VISIT
PLEASE COMMENT BELOW



Comments

Breaking News

Popular Post on this Blog

Anmol Vachan Part 4 In Hindi

Motivational Thoughts Part 1

SUBSCRIBE FOR NEW POSTS

Followers