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Anmol Vachan Part 17 In Sanskrit

संस्कृत श्लोकः Best motivational and inspirational thoughts in sankrit language with hindi meaning. Useful shlok in sanksrit language for constructing charactor of growing students. 

Hindi Stories(कहानियाँ ) Part-1

Hindi Stories(कहानियाँ ) Part-1


मनुष्य की कीमत

लोहे की दुकान में अपने पिता के साथ काम कर रहे एक बालक ने अचानक ही अपने पिता से  पुछा – “पिताजी इस दुनिया में मनुष्य की क्या कीमत होती है ?”

पिताजी एक छोटे से बच्चे से ऐसा गंभीर सवाल सुन कर हैरान रह गये.

फिर वे बोले “बेटे एक मनुष्य की कीमत आंकना बहुत मुश्किल है, वो तो अनमोल है.”

बालक – क्या सभी उतना ही कीमती और महत्त्वपूर्ण हैं ?

पिताजी – हाँ बेटे.

बालक कुछ समझा नही उसने फिर सवाल किया – तो फिर इस दुनिया मे कोई गरीब तो कोई अमीर क्यो है? किसी की कम रिस्पेक्ट तो कीसी की ज्यादा क्यो होती है?

सवाल सुनकर पिताजी कुछ देर तक शांत रहे और फिर बालक से स्टोर रूम में पड़ा एक लोहे का रॉड लाने को कहा. 

रॉड लाते ही पिताजी ने पुछा – इसकी क्या कीमत होगी?

बालक – 200 रूपये.

पिताजी – अगर मै इसके बहुत से छोटे-छटे कील बना दू तो इसकी क्या कीमत हो जायेगी ?

बालक कुछ देर सोच कर बोला – तब तो ये और महंगा बिकेगा लगभग 1000 रूपये का .

पिताजी – अगर मै इस लोहे से घड़ी के बहुत सारे स्प्रिंग बना दूँ तो?

बालक कुछ देर गणना करता रहा और फिर एकदम से उत्साहित होकर बोला ” तब तो इसकी कीमत बहुत ज्यादा हो जायेगी.”

फिर पिताजी उसे समझाते हुए बोले – “ठीक इसी तरह मनुष्य की कीमत इसमे नही है की अभी वो क्या है, बल्की इसमे है कि वो अपने आप को क्या बना सकता है.”

बालक अपने पिता की बात समझ चुका था

शिक्षा: अक्सर हम अपनी सही कीमत आंकने मे गलती कर देते है  हम अपनी वर्तमान स्थिति को देख कर अपने आप को बेकार समझने लगते है लेकिन हममें हमेशा अथाह शक्ति होती है हमारा जीवन हमेशा सम्भावनाओ से भरा होता है हमारे  जीवन मे कई बार स्थितियाँ अच्छी नही होती है, पर इससे हमारी इज्जत कम नही होती है मनुष्य के रूप में हमारा जन्म इस दुनिया मे हुआ है इसका मतलब है हम बहुत खास और महत्वपूर्ण हैं  हमें हमेशा अपने आप में सुधार करते रहना चाहिये और अपनी सही कीमत प्राप्त करने की दिशा में बढ़ते रहना चाहिये 


कर्मो के हिसाब

एक भिखारी रोज एक दरवाजे पर जाता और भीख के लिए आवाज़ लगाता और जब घर का  मालिक बाहर आता तो उसे गंदी-गंदी गालियाँ और ताने देता, मर जाओ, काम क्यों नही करते, जीवन भर भीख माँगतें रहोगे, कभी-कभी गुस्से में उसे धकेल भी देता पर भिखारी बस इतना ही कहता, ईश्वर तुम्हारें पापों को क्षमा करें।

एक दिन सेठ बड़े गुस्सें में था, शायद व्यापार में घाटा हुआ था, वो भिखारी उसी वक्त भीख माँगने आ गया। सेठ ने  आव देखा ना ताव, सीधा उसे पत्थर से दे मारा । भिखारी के सर से खून बहने लगा, फिर भी उसने सेठ से कहा ईश्वर तुम्हारे पापों को क्षमा करें और वहाँ से जाने लगा। सेठ का गुस्सा थोड़ा कम हुआ, तो वह सोचने लगा कि मैंने उसे पत्थर से भी मारा पर उसने बस दुआ ही दी। इसके पीछे क्या रहस्य है जानना पड़ेगा, और वह भिखारी के पीछे चलने लगा।

भिखारी जहाँ भी जाता सेठ उसके पीछे जाता, कहीं कोई उस भिखारी को कोई भीख दे देता तो कोई उसे मारता, जलील करता गालियाँ देता, पर भिखारी इतना ही कहता, ईश्वर तुम्हारे पापों को क्षमा करें। अब अंधेरा हो चला था, भिखारी अपने घर लौट रहा था, सेठ भी उसके पीछे था। भिखारी जैसे ही अपने घर लौटा, एक टूटी फूटी खाट पे, एक बुढिया सोई थी, जो भिखारी की पत्नी थी। जैसे ही उसने अपने पति को देखा उठ खड़ी हुई और भीख का कटोरा देखने लगी, उस भीख के कटोरे मे मात्र एक आधी बासी रोटी थी, उसे देखते ही बुढिया बोली बस इतना ही और कुछ नही, और ये आपका सर कहाँ फूट गया?

भिखारी बोला, हाँ बस इतना ही किसी ने कुछ नही दिया सबने गालियाँ दी, पत्थर मारे, इसलिए ये सर फूट गया। भिखारी ने फिर कहा सब अपने ही पापों का परिणाम हैं। याद है ना तुम्हें, कुछ वर्षो पहले हम कितने रईस हुआ करते थे, क्या नही था हमारे पास, पर हमने कभी दान नही किया, याद है तुम्हें वो अंधा भिखारी इतना कहते ही बुढिया की ऑखों में ऑसू आ गये और उसने कहा , हाँ, कैसे हम उस अंधे भिखारी का मजाक उडाते थे, कैसे उसे रोटियों की जगह खाली कागज रख देते थे, कैसे हम उसे जलील करते थे, कैसे हम उसे कभी-कभी मारते और धकेल देते थे। अब बुढिया ने कहा हाँ सब याद है मुझे, कैसे मैंने भी उसे राह नही दिखाई और घर के बनें नाले में गिरा दिया था, जब भी वहाँ रोटिया माँगता मैंने बस उसे गालियाँ दी। एक बार तो उसका कटोरा तक फेंक दिया। वो अंधा भिखारी हमेशा कहता था, तुम्हारे पापों का हिसाब ईश्वर करेंगे, आज उस भिखारी की बददुआ और हाय हमें ले डूबी।

फिर भिखारी ने कहा, पर मैं किसी को बददुआ नही देता, चाहे मेरे साथ कितनी भी ज्यादती क्यों न हो जाए। मेरे लब पर हमेशा दुआ रहती हैं, मैं अब नही चाहता कि कोई और भी इतने बुरे दिन देखे। मेरे साथ अन्याय करने वालों को भी मैं दुआ देता हूँ क्योंकि उनको मालूम ही नही, वो क्या पाप कर रहें है, जो सीधा ईश्वर देख रहा है। जैसी हमने भुगती है, कोई और न भुगते, इसलिए मेरे दिल से बस अपना हाल देख दुआ ही निकलती हैं।

सेठ चुपके चुपके सब सुन रहा था, उसे अब सारी बात समझ आ गई थी। बूढ़े और बुढिया ने आधी रोटी को दोनों ने मिलकर खाया और सब प्रभु की महिमा है बोल कर सो गये।

अगले दिन, वहाँ भिखारी भीख माँगने सेठ के यहाँ गया, सेठ ने पहले से ही रोटियाँ निकाल के रखी थीं। उसने भिखारी को दीं और हल्की सी  मुस्कान भरे स्वर में कहा, माफ करना बाबा, गलती हो गई। भिखारी ने कहा, ईश्वर तुम्हारा भला करे, और वो वहाँ से चला गया।

सेठ को एक बात समझ आ गई थी, इंसान तो बस दुआ बददुआ देते हैं। पर ईश्वर तो वो जादूगर है जो कर्मो के अनुसार हिसाब करता हैं |

हो सके तो बस अच्छा करें, वो दिखता नहीं है तो क्या हुआ ।

सब का हिसाब पक्का रहता है उसके पास।

सदैव प्रसन्न रहिये।

जो प्राप्त है, पर्याप्त है।

नेक मित्र 

एक बेटे के अनेक मित्र थे, जिसका उसे बहुत घमंड था। उसके पिता का एक ही मित्र था, लेकिन था सच्चा ।

एक दिन पिता ने बेटे को बोला कि तेरे बहुत सारे दोस्त है, उनमें से आज रात तेरे सबसे अच्छे दोस्त की परीक्षा लेते है। बेटा सहर्ष तैयार हो गया। रात को 2 बजे दोनों, बेटे के सबसे घनिष्ठ मित्र के घर पहुंचे।

बेटे ने दरवाजा खटखटाया, दरवाजा नहीं खुला, बार-बार दरवाजा ठोकने के बाद दोनो ने सुना कि अंदर से बेटे का दोस्त अपनी माताजी को कह रहा था कि माँ कह दे, मैं घर पर नहीं हूँ।

यह सुनकर बेटा उदास हो गया, अतः निराश होकर दोनों घर लौट आए। फिर पिता ने कहा कि बेटे, आज तुझे मेरे दोस्त से मिलवाता हूँ।

दोनों रात के 2 बजे पिता के दोस्त के घर पहुंचे। पिता ने अपने मित्र को आवाज लगाई। उधर से जवाब आया कि ठहरना मित्र, दो मिनट में दरवाजा खोलता हूँ।

जब दरवाजा खुला तो पिता के दोस्त के एक हाथ में रुपये की थैली और दूसरे हाथ में तलवार थी।

पिता ने पूछा, यह क्या है मित्र।

तब मित्र बोला....अगर मेरे मित्र ने दो बजे रात्रि को मेरा दरवाजा खटखटाया है, तो जरूर वह मुसीबत में होगा और अक्सर मुसीबत दो प्रकार की होती है, या तो रुपये पैसे की या किसी से विवाद हो गया हो।

अगर तुम्हें रुपये की आवश्यकता हो तो ये रुपये की थैली ले जाओ और किसी से झगड़ा हो गया हो तो ये तलवार लेकर मैं तुम्हारें साथ चलता हूँ।

तब पिता की आँखे भर आई और उन्होंने अपने मित्र से कहा कि, मित्र मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं, मैं तो बस मेरे बेटे को मित्रता की परिभाषा समझा रहा था।

ऐसे मित्र न चुने जो खुद गर्ज हो और आपके काम पड़ने पर बहाने बनाने लगे !!

शिक्षा: मित्र, कम चुनें, लेकिन नेक चुनें।

एक दिल को छू लेने वाली कहानी।

जिस दिन मैंने अपनी स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की, मैंने एक मिनट भी बर्बाद नहीं किया- मैं एक शिक्षक बनने के लिए बंगाल में अपने गाँव औसग्रुम वापस चला गया। हाँ, मुझे बड़े शहरों के स्कूलों से ज्यादा सैलरी के ऑफर मिले थे, लेकिन मुझे 169 रु. सेलेरी के रूप में मेरे स्कूल में पेश किया गए । गांव का मतलब सब कुछ था; मुझे अपने गांव के उन छात्रों को पढ़ाने की भूख थी, जिन्हें एक अच्छे शिक्षक की सबसे ज्यादा जरूरत थी।

और मैंने अपने स्कूल में 39 साल तक पढ़ाया और केवल इसलिए सेवानिवृत्त हुआ क्योंकि मैं अपनी 'सेवानिवृत्ति की उम्र'- 60 को पार कर चुका था।

क्या हास्यास्पद अवधारणा है!

तो वहाँ मैं 60 साल का था, सेवानिवृत्त हो गया और मुझे उम्मीद थी कि मैं अपना साल शक्कर वाली चाय पीकर और चारपाई पर अपना समय बिताकर बिताऊँगा! लेकिन मैं बेचैन था, मैं रिटायर नहीं होना चाहता था और खुद से पूछता रहा, 'अब मैं क्या करूं?' कुछ दिनों बाद मुझे जवाब मिल गया।

एक सुबह करीब 6:30 बजे मैंने देखा कि मेरे घर में 3 लड़कियां घुस रही हैं। मैं चौंक गया जब उन्होंने मुझे बताया कि वे सेवानिवृत्त हो चुके मास्टर को देखने के लिए 23 किलोमीटर से अधिक साइकिल चला चुकी हैं। वे युवा आदिवासी लड़कियां थीं जो सीखने के लिए बेताब थीं । उन्होंने हाथ जोड़कर पूछा, 'मास्टरजी, क्या आप हमें पढ़ाएँगे?' मैंने तुरंत हामी भर दी और कहा, 'मैं आपको पढ़ा सकता हूं, लेकिन आपको मेरे स्कूल की साल भर की फीस देनी होगी। क्या आप देने को तैयार हैं?'

उन्होंने कहा, 'हाँ, मास्टरजी, हम किसी तरह पैसों का प्रबंध कर लेंगे।'

तो मैंने कहा, 'हाँ, मेरी फीस पूरे साल की एक रुपया है!'

वे बहुत खुश हुईं, उन्होंने मुझे गले से लगा लिया और कहा, 'हम आपको 1 रुपया और 4 चॉकलेट भी देंगे!'

मैं प्रफुल्लित था। इसलिए, उनके जाने के बाद, मैंने अपनी धोती पहन ली और सीधे अपने स्कूल वापस चला गया और उनसे अनुरोध किया कि मुझे पढ़ाने के लिए एक कक्षा दें... उन्होंने मना कर दिया। लेकिन मैं रुकने वाला नहीं था- मुझमें वर्षों तक पढ़ाना अभी बाकी था, इसलिए मैं घर वापस गया, अपने बरामदे को साफ किया और वहाँ पढ़ाने का फैसला किया।

वह 2004 की बात है- मेरी पाठशाला उन 3 लड़कियों के साथ शुरू हुई थी और आज हमारे पास प्रति वर्ष 3000 से अधिक छात्र हैं, जिनमें से अधिकांश युवा आदिवासी लड़कियां हैं। मेरा दिन अभी भी सुबह 6 बजे गाँव के चारों ओर घूमने के साथ शुरू होता है और फिर मैं अपने दरवाजे सभी जगह से आने वाले छात्रों के लिए खोल देता हूँ- कुछ लड़कियाँ 20 से अधिक किलोमीटर पैदल चलती हैं; मुझे उनसे बहुत कुछ सीखना है।

इन वर्षों में, मेरे छात्र प्रोफेसर, विभागों के प्रमुख और आईटी पेशेवर बन गए हैं- वे हमेशा मुझे फोन करते हैं और मुझे खुशखबरी देते हैं और हमेशा की तरह, मैं उनसे कहता हूं कि कृपया मुझे कुछ चॉकलेट दें! और पिछले साल, जब मैंने पद्मश्री जीता, तो मेरा फोन बजना बंद नहीं हुआ; पूरे गांव ने मेरे साथ जश्न मनाया-वह एक खुशी का दिन था, लेकिन फिर भी मैंने अपने छात्रों को कक्षा से बंक नहीं करने दिया।

और मेरे दरवाजे सभी के लिए खुले हैं- कभी भी मेरे और मेरी पाठशाला में आ जाइए; हमारा गाँव सुंदर है और मेरे सभी छात्र मेधावी हैं- मुझे यकीन है कि आप उनसे कुछ सीख सकते हैं।

मैं बंगाल का एक साधारण शिक्षक हूं जो अपनी चारपाई पर चाय और शाम की झपकी का आनंद लेता है। मेरे जीवन का मुख्य आकर्षण मास्टर मोशाई कहा जा रहा है-मैं अपनी आखिरी सांस तक पढ़ाना चाहता हूं; यही करने के लिए मुझे इस ग्रह पर रखा गया है!”

*सुजीत चट्टोपाध्याय*

2021 साहित्य और शिक्षा के लिए पद्म श्री विजेता । पूर्ब बर्धमान, पश्चिम बंगाल के एक 78 वर्षीय सेवानिवृत्त स्कूल शिक्षक। उन्हें "सदई फकीर पाठशाला" नाम के उनके मुफ्त कोचिंग सेंटर के लिए जाना जाता है।

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