Hindi Stories(कहानियाँ ) Part-1
Hindi Stories(कहानियाँ ) Part-1
मनुष्य की कीमत
लोहे की दुकान में अपने पिता के साथ काम कर रहे एक बालक ने अचानक ही अपने पिता से पुछा – “पिताजी इस दुनिया में मनुष्य की क्या कीमत होती है ?”
पिताजी एक छोटे से बच्चे से ऐसा गंभीर सवाल सुन कर हैरान रह गये.
फिर वे बोले “बेटे एक मनुष्य की कीमत आंकना बहुत मुश्किल है, वो तो अनमोल है.”
बालक – क्या सभी उतना ही कीमती और महत्त्वपूर्ण हैं ?
पिताजी – हाँ बेटे.
बालक कुछ समझा नही उसने फिर सवाल किया – तो फिर इस दुनिया मे कोई गरीब तो कोई अमीर क्यो है? किसी की कम रिस्पेक्ट तो कीसी की ज्यादा क्यो होती है?
सवाल सुनकर पिताजी कुछ देर तक शांत रहे और फिर बालक से स्टोर रूम में पड़ा एक लोहे का रॉड लाने को कहा.
रॉड लाते ही पिताजी ने पुछा – इसकी क्या कीमत होगी?
बालक – 200 रूपये.
पिताजी – अगर मै इसके बहुत से छोटे-छटे कील बना दू तो इसकी क्या कीमत हो जायेगी ?
बालक कुछ देर सोच कर बोला – तब तो ये और महंगा बिकेगा लगभग 1000 रूपये का .
पिताजी – अगर मै इस लोहे से घड़ी के बहुत सारे स्प्रिंग बना दूँ तो?
बालक कुछ देर गणना करता रहा और फिर एकदम से उत्साहित होकर बोला ” तब तो इसकी कीमत बहुत ज्यादा हो जायेगी.”
फिर पिताजी उसे समझाते हुए बोले – “ठीक इसी तरह मनुष्य की कीमत इसमे नही है की अभी वो क्या है, बल्की इसमे है कि वो अपने आप को क्या बना सकता है.”
बालक अपने पिता की बात समझ चुका था।
कर्मो के हिसाब
नेक मित्र
एक बेटे के अनेक मित्र थे, जिसका उसे बहुत घमंड था। उसके पिता का एक ही मित्र था, लेकिन था सच्चा ।एक दिन पिता ने बेटे को बोला कि तेरे बहुत सारे दोस्त है, उनमें से आज रात तेरे सबसे अच्छे दोस्त की परीक्षा लेते है। बेटा सहर्ष तैयार हो गया। रात को 2 बजे दोनों, बेटे के सबसे घनिष्ठ मित्र के घर पहुंचे।
बेटे ने दरवाजा खटखटाया, दरवाजा नहीं खुला, बार-बार दरवाजा ठोकने के बाद दोनो ने सुना कि अंदर से बेटे का दोस्त अपनी माताजी को कह रहा था कि माँ कह दे, मैं घर पर नहीं हूँ।
यह सुनकर बेटा उदास हो गया, अतः निराश होकर दोनों घर लौट आए। फिर पिता ने कहा कि बेटे, आज तुझे मेरे दोस्त से मिलवाता हूँ।
दोनों रात के 2 बजे पिता के दोस्त के घर पहुंचे। पिता ने अपने मित्र को आवाज लगाई। उधर से जवाब आया कि ठहरना मित्र, दो मिनट में दरवाजा खोलता हूँ।
जब दरवाजा खुला तो पिता के दोस्त के एक हाथ में रुपये की थैली और दूसरे हाथ में तलवार थी।
पिता ने पूछा, यह क्या है मित्र।
तब मित्र बोला....अगर मेरे मित्र ने दो बजे रात्रि को मेरा दरवाजा खटखटाया है, तो जरूर वह मुसीबत में होगा और अक्सर मुसीबत दो प्रकार की होती है, या तो रुपये पैसे की या किसी से विवाद हो गया हो।
अगर तुम्हें रुपये की आवश्यकता हो तो ये रुपये की थैली ले जाओ और किसी से झगड़ा हो गया हो तो ये तलवार लेकर मैं तुम्हारें साथ चलता हूँ।
तब पिता की आँखे भर आई और उन्होंने अपने मित्र से कहा कि, मित्र मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं, मैं तो बस मेरे बेटे को मित्रता की परिभाषा समझा रहा था।
ऐसे मित्र न चुने जो खुद गर्ज हो और आपके काम पड़ने पर बहाने बनाने लगे !!
शिक्षा: मित्र, कम चुनें, लेकिन नेक चुनें।
एक दिल को छू लेने वाली कहानी।
जिस दिन मैंने अपनी स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की, मैंने एक मिनट भी बर्बाद नहीं किया- मैं एक शिक्षक बनने के लिए बंगाल में अपने गाँव औसग्रुम वापस चला गया। हाँ, मुझे बड़े शहरों के स्कूलों से ज्यादा सैलरी के ऑफर मिले थे, लेकिन मुझे 169 रु. सेलेरी के रूप में मेरे स्कूल में पेश किया गये। गांव का मतलब सब कुछ था; मुझे अपने गांव के उन छात्रों को पढ़ाने की भूख थी, जिन्हें एक अच्छे शिक्षक की सबसे ज्यादा जरूरत थी।और मैंने अपने स्कूल में 39 साल तक पढ़ाया और केवल इसलिए सेवानिवृत्त हुआ क्योंकि मैं अपनी 'सेवानिवृत्ति की उम्र'- 60 को पार कर चुका था।
क्या हास्यास्पद अवधारणा है!
तो वहाँ मैं 60 साल का था, सेवानिवृत्त हो गया और मुझे उम्मीद थी कि मैं अपना साल शक्कर वाली चाय पीकर और चारपाई पर अपना समय बिताकर बिताऊँगा! लेकिन मैं बेचैन था, मैं रिटायर नहीं होना चाहता था और खुद से पूछता रहा, 'अब मैं क्या करूं?' कुछ दिनों बाद मुझे जवाब मिल गया।
एक सुबह करीब 6:30 बजे मैंने देखा कि मेरे घर में 3 लड़कियां घुस रही हैं। मैं चौंक गया जब उन्होंने मुझे बताया कि वे सेवानिवृत्त हो चुके मास्टर को देखने के लिए 23 किलोमीटर से अधिक साइकिल चला चुकी हैं। वे युवा आदिवासी लड़कियां थीं जो सीखने के लिए बेताब थीं । उन्होंने हाथ जोड़कर पूछा, 'मास्टरजी, क्या आप हमें पढ़ाएँगे?' मैंने तुरंत हामी भर दी और कहा, 'मैं आपको पढ़ा सकता हूं, लेकिन आपको मेरे स्कूल की साल भर की फीस देनी होगी। क्या आप देने को तैयार हैं?'
उन्होंने कहा, 'हाँ, मास्टरजी, हम किसी तरह पैसों का प्रबंध कर लेंगे।'
तो मैंने कहा, 'हाँ, मेरी फीस पूरे साल की एक रुपया है!'
वे बहुत खुश हुईं, उन्होंने मुझे गले से लगा लिया और कहा, 'हम आपको 1 रुपया और 4 चॉकलेट भी देंगे!'
मैं प्रफुल्लित था। इसलिए, उनके जाने के बाद, मैंने अपनी धोती पहन ली और सीधे अपने स्कूल वापस चला गया और उनसे अनुरोध किया कि मुझे पढ़ाने के लिए एक कक्षा दें... उन्होंने मना कर दिया। लेकिन मैं रुकने वाला नहीं था- मुझमें वर्षों तक पढ़ाना अभी बाकी था, इसलिए मैं घर वापस गया, अपने बरामदे को साफ किया और वहाँ पढ़ाने का फैसला किया।
वह 2004 की बात है- मेरी पाठशाला उन 3 लड़कियों के साथ शुरू हुई थी और आज हमारे पास प्रति वर्ष 3000 से अधिक छात्र हैं, जिनमें से अधिकांश युवा आदिवासी लड़कियां हैं। मेरा दिन अभी भी सुबह 6 बजे गाँव के चारों ओर घूमने के साथ शुरू होता है और फिर मैं अपने दरवाजे सभी जगह से आने वाले छात्रों के लिए खोल देता हूँ- कुछ लड़कियाँ 20 से अधिक किलोमीटर पैदल चलती हैं; मुझे उनसे बहुत कुछ सीखना है।
इन वर्षों में, मेरे छात्र प्रोफेसर, विभागों के प्रमुख और आईटी पेशेवर बन गए हैं- वे हमेशा मुझे फोन करते हैं और मुझे खुशखबरी देते हैं और हमेशा की तरह, मैं उनसे कहता हूं कि कृपया मुझे कुछ चॉकलेट दें! और पिछले साल, जब मैंने पद्मश्री जीता, तो मेरा फोन बजना बंद नहीं हुआ; पूरे गांव ने मेरे साथ जश्न मनाया-वह एक खुशी का दिन था, लेकिन फिर भी मैंने अपने छात्रों को कक्षा से बंक नहीं करने दिया।
और मेरे दरवाजे सभी के लिए खुले हैं- कभी भी मेरे और मेरी पाठशाला में आ जाइए; हमारा गाँव सुंदर है और मेरे सभी छात्र मेधावी हैं- मुझे यकीन है कि आप उनसे कुछ सीख सकते हैं।
मैं बंगाल का एक साधारण शिक्षक हूं जो अपनी चारपाई पर चाय और शाम की झपकी का आनंद लेता है। मेरे जीवन का मुख्य आकर्षण मास्टर मोशाई कहा जा रहा है-मैं अपनी आखिरी सांस तक पढ़ाना चाहता हूं; यही करने के लिए मुझे इस ग्रह पर रखा गया है!”
*सुजीत चट्टोपाध्याय*
2021 साहित्य और शिक्षा के लिए पद्म श्री विजेता । पूर्ब बर्धमान, पश्चिम बंगाल के एक 78 वर्षीय सेवानिवृत्त स्कूल शिक्षक। उन्हें "सदई फकीर पाठशाला" नाम के उनके मुफ्त कोचिंग सेंटर के लिए जाना जाता है।
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