Featured Posts

Hindi Shayari Part 18

     हिंदी शायरी पार्ट -18 Beautiful Hindi shayari, Emotional hindi shayari, Sad hindi shayari, hindi shayari based on dosti, hindi shayari collection, Best hindi shayari, हिंदी शायरी पार्ट-18 1 आप बात अपनी मर्जी से करते हो,  और हम भी इतने पागल हैं,  कि आपकी मर्जी का इंतजार करते हैं।  2  तुम तो फिर भी गैर हो,  तुमसे  तो  शिकायत कैसी,  मेरे अपने भी मुझे गैरों की तरह देखते हैं।  3   अकेले तो हम शुरू से ही थे ,  बस  थोड़ा सा वहम हो गया था कि मुझे भी कोई चाहता है।  4  दोस्ती की है, तुमसे बेफिक्र रहो,  नाराजगी हो सकती है पर कभी नफरत नहीं  ।  5 मसला ये नहीं कि तुम मिल नहीं पाओगे, दर्द तो ये है कि हम तुम्हें  भूला नहीं पाएंगे ।  6  कभी न कभी तो एहसास होगा तुम्हें,  के कोई था जो तुम्हें बिना मतलब से चाहता था।  7 मसरूफ हो ...

Dohe in Hindi

Dohe in Hindi (दोहे) Rare Collection



इस ब्लॉग में अलग अलग कवियों के वो दोहे दिए गए हैं जिन्हे हर कोई बहुत आसानी से समझ सकता है और जिनसे जिंदगी को जीने के लिए कोई न कोई उपदेश मिलता हो। ये उपदेश सबको जिंदगी की रह दिखाते हैं , जिससे इंसान को जिंदगी में कोई भी फैसला लेने में आसानी होती है।

चींटी कितनी छोटी होती है ! उसको यदि दिल्ली से वृन्दावन की यात्रा करनी हो तो लगभग 3 - 4 जन्म लग जायेंगे। यदि यही चींटी किसी वृन्दावन जाने वाले व्यक्ति के कपड़ों पे चढ़ जाये तो सहज ही 3 - 4 घंटों में वृन्दावन पहुंच जाएगी। इसी प्रकार इंसान के लिए भवसागर पार करना बहुत मुश्किल है , पता नहीं कई जन्म लग सकते हैं। पर यदि हम गुरु का हाथ पकड़ लें और उनके बताये सन्मार्ग पर श्रद्धा पूर्वक चलें, तो बहुत ही सरलता से भवसागर को पार कर सकते हैं ।   

दोहे

1

मल मल धोये शरीर को , धोये  मन का मैल। 

नहाये गंगा गोमती रहे बैल का बैल।

2

जाके पैर  फटी विवाई , 

वो क्या जाने पीर पराई।

3

माला फेरत जुग गयापर फिरा  मन का फेर।

कर का मनका डारी रे , मन का मन का फेर।।

4

साधु भूखा भाव का , धन का भूखा नाहीं 

धन का भूखा जो फिरेवो साधु नाहीं।।

5

जात   पूछो साधु की,पूछ लीजियेगा ज्ञान।

वार करो तलवार का ,पड़ा रहने दो म्यान।

6

लाली मेरे लाल कीनित देखूं तित लाल ,

लाली देखन मैं गईमैं भी हो गई लाल।

7

अजगर करे  चाकरीपंछी करे  काम ,

दास मलूका कह गयो , सबके दाता राम।

8

माँगन मरण समान हैमत मांगे कोई भीख ,

माँगन से मरण भला सतगुरु की है सीख।

9

रहिमन वो लोग मर गएजो कहि माँगन जाहि ,

उनसे पहले वो मरेजिनमुख निकसत नाही 

10

साईं इतना दीजियेजामे कटुम्भ समाये ,

मैं भी भूखा  रहूं , और साधु  भूखा जाये।

11

राम नाम मणि दीप , धरूंजेहरि देहरी द्वार,

तुलसी भीतर बाहर रहूं , जो चहसि उजयार।

12

रहिमन यहीं संसार में , सबसों मिलिए धायें।

 जाने केहि रूप में नारायण मिली जाये।

13

राम नाम अविलम्ब बिनु , परमार्थ की आस ,

बरसत बारिद बून्द गहिचाहत चढ़न आकाश।

14

जो रहीम जग मारियो , मैन बान की चोट ,

भक्तभक्त कोई बची गयो , चरण कमल की ओट।

15

पापों से बचते रहो , जीवन के दिन चार,

वाणी से सत बोलना , रखना सरल विचार।

16

सागर कहता मैं बड़ा पर  प्यास बुझाये ,

नदिया की दो बून्द से ही सकल प्यास बुझ जाये।

17

याचक द्वारे हो खड़ा , मत करना अपमान ,

पदमा उससे रूठती , कुपित होये भगवान।

18

अपने सुख की चाह में , करो  अत्याचार ,

जितना तुमको मिल गयाहै सुख का आधार।

19

महल अटारी पर कभी , मत करना अभिमान,

अगले पल क्या पतासमय बड़ा बलवान।

20

माटी से यह घाट बनामाटी में मिल जाहि ,

जो इस घट पर ऐंठता ,वो सुख की ठोकर खाई।

21

प्रेम करो संसार से ,प्रेम ही सुख की खान ,

प्रेम बिना संसार में , हर शह धूलि समान।

22

चाह गई चिंता मिटीमनवा बेपरवाह ,

जिनको कछु  चाहिएवही शहंशाह।

23

माया मरी  मन मरामर - मर गए शरीर,

आशा तृष्णा ना  मरी , कह गयो संत कबीर।

24

तृष्णा तू अति कोढ़नी , लोभ है भर्तार ,

इन्हे कभी  भेंटिए , कोढ़ लगे तत्काल।

25

तीन लोक नौ खंड में , गुरु से बड़ा  कोई ,

करता जो  करि सके , गुरु करे सो होये।

26

पाहन पूजे हरि मिलेमैं पूजूँ पहाड़ ,

तात यह चक्की भली , पीस खाये संसार।

27

गुरु गोबिंद दोउ खड़े , काके लागूं पाए ,

बलिहारी गुरु आपनो , जिन गोबिंद दिओ मिलाये।

28

जल में कुम्भ , कुम्भ में जल , है बाहर भीतर पानी 

फूटा कुम्भ जल जल ही समाना , यह तथ्य कहो गियाना।

29

माला तो कर में फिरे , जीभ फिरे मुख माहि ,

मनवा तो दस दिसी फिरे , ये तो सुमिरन नाही।

30

बुरा ढूंडन में गयापर बुरा  मिलया कोई ,

अपने मन में झांक के देखा तो मुझसे बुरा  कोई।

31

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर ,

पंथी को छाया नहीं और फल लगे अति दूर।

32

राम नाम कली कामतरु , राम भक्ति सुरधेनु ,

सकल सुमंगल मूल जग , गुरु पद पंकज रेनु।

33

राम नाम अति मीठा नाम कोई गा के देख ले ,

 जाते हैं राम , कोई बुला के देख ले।

34

राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट ,

अंत काल पछतायेगा , जब प्राण जायेंगे छूट।

35

ऐसी वाणी बोलिये , मन का आपा खोए ,

औरों को शीतल करेआपहु शीतल होए।

36

लीडरों की धूम है फॉलोवर कोई नहीं ,

सब तो जनरल हे सिपाही कोई नहीं।

37

जिस कौम को मिटने का एहसास नहीं होता ,

उस कौम का भी कोई इतिहास नहीं होता।

38

रुखा सूखा खा कर ठंडा पानी पी ,

दूसरे की झोंपड़ी देखकर  तरसइं जी।

39

निंदक दूर  कीजियेदीजै आदर मान ,

तन मन सब निर्मल करे , बक बक आन ही आन।

40

केवल चमक दमक से कोई बर्तन पात्र नहीं कहलाता ,

रंगीन चित्रों का पोथा भी शाश्त्र नहीं कहलाता ,

उद्देश्य हीन मानव इन्सान नहीं कहलाता ,

बिना संस्कृति के कोई देश भी राष्ट्र नहीं कहलाता।

41

कबीरा हरि के रूठते गुरु की शरणे जाये ,

कहें कबीर गुरु रूठते , हरि  होत सहाई 

42

जलपर माने मछली , कुल पर माने सुधि ,

जाको जैसे गुरु मिले ताको तैसी बुद्धि।

43

कबीरा ते नर अन्ध है ,जो कहते गुरु को और ,

हरि के रूठे ठौर है , पर गुरु के रूठे नहीं ठौर।

44

सब धरती कागद करूं , लेखनी सब बन राये ,

सात समुन्दर की मसि करूं , गुरु गुण लिखा  जाये।

45

सद्गुरु मेरा शूरमा , करे शब्द की चोट ,

मारे गोला प्रेम का , हरे भरम की कोट।

46

उठ जाग मुसाफिर भोर भई , अब रैन कहाँ जो सोवत है ,

जो सोवत है वो खोवत है , जो जगत है वो पावत है।

47

सुखिया सब संसार हैखावे और सोवे ,

दुखिया दास ദിനേശ് हैजगे और रोये।

48

 


संस्कृत श्लोकः

1

असतो मा सद्गमय ।
तमसो मा ज्योतिर्गमय ।
मृत्योर्माऽमृतं गमय ॥

अर्थात :- हे ईश्वर मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो। मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो. मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।

2

अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलं।।

अर्थात :- बड़ों का अभिवादन करने वाले मनुष्य की और नित्यं वृद्धों की सेवा करने वाले मनुष्य के चार गुण बढ़ जाते हैं आयु, विद्या, यश और बल ।

3

अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम् |
अधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतः सुखम् ||

अर्थात:- आलसी को विद्या कहाँ अनपढ़ / मूर्ख को धन कहाँ निर्धन को मित्र कहाँ और अमित्र को सुख कहाँ |

4

उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।।

अर्थात :- व्यक्ति के मेहनत करने से ही उसके काम पूरे होते हैं। सिर्फ इच्छा करने से उसके काम पूरे नहीं होते। जैसे सोये हुए शेर के मुंह में हिरण स्वयं प्रवेश नहीं करता , उसके लिए शेर को परिश्रम करना पड़ता है।

5

अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् |
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ||

अर्थात :- यह मेरा है, यह पराया है ; ऐसी सोच संकुचित चित्त वोले व्यक्तियों की होती है; इसके विपरीत उदारचरित वाले लोगों के लिए तो यह सम्पूर्ण धरती ही एक परिवार जैसी होती है |

6

यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किं।
लोचनाभ्याम विहीनस्य, दर्पण:किं करिष्यति।।

अर्थात :- जिस व्यक्ति के पास स्वयं का विवेक नहीं है। शास्त्र उसका क्या करेगा? जैसे नेत्रहीन व्यक्ति के लिए दर्पण व्यर्थ है।

7

विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम्।।

अर्थात :- ज्ञान विनम्रता प्रदान करता है, विनम्रता से योग्यता आती है और योग्यता से धन प्राप्त होता है, जिससे व्यक्ति धर्म के कार्य करता है और सुखी रहता है।

8

न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि।
व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।।

अर्थात :- न चोर चुरा सकता है, न राजा छीन सकता है, न इसका भाइयों के बीच बंट वारा होता है और न ही संभलना कोई भर है। इसलिए खर्च करने से बढ़ने वाला विद्या रुपी धन, सभी धनों से श्रेष्ठ है।

9

गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।

अर्थात :- गुरू ही ब्रह्मा हैं, गुरू ही विष्णु हैं, गुरू ही शंकर है, गुरू ही साक्षात परमब्रह्म हैं। ऐसे गुरू का मैं नमन करता हूं।

10

माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो  पाठितः।
 शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा।।

अर्थात :- जो माता पिता अपने बच्चो को शिक्षा से वंचित रखते हैंऐसे माँ बाप बच्चो के शत्रु के समान है। विद्वानों की सभा में अनपढ़ व्यक्ति कभी सम्मान नहीं पा सकता वह हंसो के बीच एक बगुले के सामान है।

11

न कश्चित कस्यचित मित्रं, न कश्चित कस्यचित रिपु:।
व्यवहारेण जायन्ते, मित्राणि रिप्वस्तथा।।

अर्थात :- न कोई किसी का मित्र होता है। न कोई किसी का शत्रु। व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं।

12

बलवानप्यशक्तोऽसौ धनवानपि निर्धनः |
श्रुतवानपि मूर्खोऽसौ यो धर्मविमुखो जनः ||

अर्थात :- जो व्यक्ति धर्म ( कर्तव्य ) से विमुख होता है वह ( व्यक्ति ) बलवान् हो कर भी असमर्थ, धनवान् हो कर भी निर्धन तथा ज्ञानी हो कर भी मूर्ख होता है |

13

चन्दनं शीतलं लोके,चन्दनादपि चन्द्रमाः |
चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः ||

अर्थात :- संसार में चन्दन को शीतल माना जाता है लेकिन चन्द्रमा चन्दन से भी शीतल होता है | अच्छे मित्रों का साथ चन्द्र और चन्दन दोनों की तुलना में अधिक शीतलता देने वाला होता है |

14


15





THANKS FOR YOUR VISIT
PLEASE COMMENT BELOW


टिप्पणियाँ

Breaking News

Popular Post on this Blog

Motivational Thoughts Part 5

Hindi Shayari Part 18

Home Page For Hindi Yaden

SUBSCRIBE FOR NEW POSTS

फ़ॉलोअर