Dohe in Hindi
दोहे
1 |
मल मल धोये शरीर को , धोये न मन का मैल। नहाये गंगा गोमती रहे बैल का बैल। |
2 |
जाके पैर न फटी विवाई , वो क्या जाने पीर पराई। |
3 |
माला फेरत जुग गया, पर फिरा न मन का फेर। कर का मनका डारी रे , मन का मन का फेर।। |
4 |
साधु भूखा भाव का , धन का भूखा नाहीं । धन का भूखा जो फिरे, वो साधु नाहीं।। |
5 |
जात न पूछो साधु की,पूछ लीजियेगा ज्ञान। वार करो तलवार का ,पड़ा रहने दो म्यान। |
6 |
लाली मेरे लाल की, नित देखूं तित लाल , लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल। |
7 |
अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम , दास मलूका कह गयो , सबके दाता राम। |
8 |
माँगन मरण समान है, मत मांगे कोई भीख , माँगन से मरण भला सतगुरु की है सीख। |
9 |
रहिमन वो लोग मर गए, जो कहि माँगन जाहि , उनसे पहले वो मरे, जिनमुख निकसत नाही । |
10 |
साईं इतना दीजिये, जामे कटुम्भ समाये , मैं भी भूखा न रहूं , और साधु न भूखा जाये। |
11 |
राम नाम मणि दीप , धरूं, जेहरि देहरी द्वार, तुलसी भीतर बाहर रहूं , जो चहसि उजयार। |
12 |
रहिमन यहीं संसार में , सबसों मिलिए धायें। न जाने केहि रूप में नारायण मिली जाये। |
13 |
राम नाम अविलम्ब बिनु , परमार्थ की आस , बरसत बारिद बून्द गहि, चाहत चढ़न आकाश। |
14 |
जो रहीम जग मारियो , मैन बान की चोट , भक्त- भक्त कोई बची गयो , चरण कमल की ओट। |
15 |
पापों से बचते रहो , जीवन के दिन चार, वाणी से सत बोलना , रखना सरल विचार। |
16 |
सागर कहता मैं बड़ा पर न प्यास बुझाये , नदिया की दो बून्द से ही सकल प्यास बुझ जाये। |
17 |
याचक द्वारे हो खड़ा , मत करना अपमान , पदमा उससे रूठती , कुपित होये भगवान। |
18 |
अपने सुख की चाह में , करो न अत्याचार , जितना तुमको मिल गया, है सुख का आधार। |
19 |
महल अटारी पर कभी , मत करना अभिमान, अगले पल क्या पता, समय बड़ा बलवान। |
20 |
माटी से यह घाट बना, माटी में मिल जाहि , जो इस घट पर ऐंठता ,वो सुख की ठोकर खाई। |
21 |
प्रेम करो संसार से ,प्रेम ही सुख की खान , प्रेम बिना संसार में , हर शह धूलि समान। |
22 |
चाह गई चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह , जिनको कछु न चाहिए, वही शहंशाह। |
23 |
माया मरी न मन मरा, मर - मर गए शरीर, आशा तृष्णा ना मरी , कह गयो संत कबीर। |
24 |
तृष्णा तू अति कोढ़नी , लोभ है भर्तार , इन्हे कभी न भेंटिए , कोढ़ लगे तत्काल। |
25 |
तीन लोक नौ खंड में , गुरु से बड़ा न कोई , करता जो न करि सके , गुरु करे सो होये। |
26 |
पाहन पूजे हरि मिले, मैं पूजूँ पहाड़ , तात यह चक्की भली , पीस खाये संसार। |
27 |
गुरु गोबिंद दोउ खड़े , काके लागूं पाए , बलिहारी गुरु आपनो , जिन गोबिंद दिओ मिलाये। |
28 |
जल में कुम्भ , कुम्भ में जल , है बाहर भीतर पानी फूटा कुम्भ जल जल ही समाना , यह तथ्य कहो गियाना। |
29 |
माला तो कर में फिरे , जीभ फिरे मुख माहि , मनवा तो दस दिसी फिरे , ये तो सुमिरन नाही। |
30 |
बुरा ढूंडन में गया, पर बुरा न मिलया कोई , अपने मन में झांक के देखा तो मुझसे बुरा न कोई। |
31 |
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर , पंथी को छाया नहीं और फल लगे अति दूर। |
32 |
राम नाम कली कामतरु , राम भक्ति सुरधेनु , सकल सुमंगल मूल जग , गुरु पद पंकज रेनु। |
33 |
राम नाम अति मीठा नाम कोई गा के देख ले , आ जाते हैं राम , कोई बुला के देख ले। |
34 |
राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट , अंत काल पछतायेगा , जब प्राण जायेंगे छूट। |
35 |
ऐसी वाणी बोलिये , मन का आपा खोए , औरों को शीतल करे, आपहु शीतल होए। |
36 |
लीडरों की धूम है फॉलोवर कोई नहीं , सब तो जनरल हे सिपाही कोई नहीं। |
37 |
जिस कौम को मिटने का एहसास नहीं होता , उस कौम का भी कोई इतिहास नहीं होता। |
38 |
रुखा सूखा खा कर ठंडा पानी पी , दूसरे की झोंपड़ी देखकर न तरसइं जी। |
39 |
निंदक दूर न कीजिये, दीजै आदर मान , तन मन सब निर्मल करे , बक बक आन ही आन। |
40 |
केवल चमक दमक से कोई बर्तन पात्र नहीं कहलाता , रंगीन चित्रों का पोथा भी शाश्त्र नहीं कहलाता , उद्देश्य हीन मानव इन्सान नहीं कहलाता , बिना संस्कृति के कोई देश भी राष्ट्र नहीं कहलाता। |
41 |
कबीरा हरि के रूठते गुरु की शरणे जाये , कहें कबीर गुरु रूठते , हरि न होत सहाई । |
42 |
जलपर माने मछली , कुल पर माने सुधि , जाको जैसे गुरु मिले ताको तैसी बुद्धि। |
43 |
कबीरा ते नर अन्ध है ,जो कहते गुरु को और , हरि के रूठे ठौर है , पर गुरु के रूठे नहीं ठौर। |
44 |
सब धरती कागद करूं , लेखनी सब बन राये , सात समुन्दर की मसि करूं , गुरु गुण लिखा न जाये। |
45 |
सद्गुरु मेरा शूरमा , करे शब्द की चोट , मारे गोला प्रेम का , हरे भरम की कोट। |
46 |
उठ जाग मुसाफिर भोर भई , अब रैन कहाँ जो सोवत है , जो सोवत है वो खोवत है , जो जगत है वो पावत है। |
47 |
सुखियासब संसार है, खावे और सोवे , दुखिया दास ദിനേശ് है, जगे और रोये। |
48 |
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संस्कृत श्लोकः
1 |
असतो मा सद्गमय । |
2 |
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:। |
3 |
अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम् | अधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतः सुखम् || अर्थात:- आलसी को विद्या कहाँ अनपढ़ / मूर्ख को धन कहाँ निर्धन को मित्र कहाँ और अमित्र को सुख कहाँ | |
4 |
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः। |
5 |
अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् | |
6 |
यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किं। |
7 |
विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्। |
8 |
न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि। |
9 |
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। अर्थात :- गुरू ही ब्रह्मा हैं, गुरू ही विष्णु हैं, गुरू ही शंकर है, गुरू ही साक्षात परमब्रह्म हैं। ऐसे गुरू का मैं नमन करता हूं। |
10 |
माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः। अर्थात :- जो माता पिता अपने बच्चो को शिक्षा से वंचित रखते हैं, ऐसे माँ बाप बच्चो के शत्रु के समान है। विद्वानों की सभा में अनपढ़ व्यक्ति कभी सम्मान नहीं पा सकता वह हंसो के बीच एक बगुले के सामान है। |
11 |
न कश्चित कस्यचित मित्रं, न कश्चित कस्यचित रिपु:। |
12 |
बलवानप्यशक्तोऽसौ धनवानपि निर्धनः | |
13 |
चन्दनं शीतलं लोके,चन्दनादपि चन्द्रमाः | |
14 |
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15 |
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