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Hindi Shayari Part 17
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हिंदी शायरी पार्ट -17
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1 |
बस इस तरह बसर हमने अपनी जिंदगी कर ली। |
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जो अपना नहीं उस पर हक़ क्या जताना , जो तकलीफ न समझे उसे दर्द क्या बताना। |
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3 |
न मोहब्बत न दोस्ती के लिए।, वक़्त रुकता नहीं किसी के लिए , अपने दिल को दुःख न दे यूँ ही , इस जमाने की बेरुखी के लिए। |
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फासले होते नहीं, बनाए जाते हैं। मीलों दूर रहकर भी रिश्ते निभाए जाते हैं। दिखावे से जिंदगी नहीं चलती। क्योंकि कुछ रिश्ते भरोसे से निभाए जाते हैं। |
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फरिश्ते भी रोते हैं मुझे देखकर, किसी ने इस कदर रुलाया है मुझे, मोहब्बत के नाम से भी डर लगता है, किसी ने इस कदर ठुकराया है मुझे। |
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कुछ दिनों से मैं खुद से खफा सा बैठा हूं। मैं अपनी जिंदगी को तमाशा बनाकर बैठा हूं। जितना लोग पाने की ख्वाहिश रखते हैं। उतना मैं पहले से गवा कर बैठा हूं । |
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मुझ पर है सैकड़ो इल्जाम, मेरे साथ न चल, तू भी हो जाएगी बदनाम, मेरे साथ न चल, तू नई सुबह की उजली सी किरण, मैं हूं धूल भरी शाम, मेरे साथ ना चले। |
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दुख अपना हमें अगर बताना नहीं आता, तुमको भी तो अंदाजा लगाना नहीं आता, ढूंढे हैं तो पलकों पर चमकने के बहाने, आंसू को मेरी आंख में आना नहीं आता। |
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21 |
यह अलग बात है, कि मुकद्दर नहीं बदला अपना, एक ही दर पे रहे, दर नहीं बदला अपना, ये इश्क का खेल है, शतरंज नहीं है जाना, मात खाई है, मगर घर नहीं जाना। |
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22 |
निस्वार्थ समर्पण को कमजोरी मत समझो, मन के रिश्ते को कच्ची डोरी मत समझो, तुम पढ़ ना सके यह कमजोरी तुम्हारी अपनी है, मेरे मन की किताब को कोरी मत समझो। |
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23 |
जिंदगी कुछ यूं गुजारी जा रही है, जैसे एक जंग हारी जा रही है, जहां पर पहले से जख्म के निशान थे, फिर से वहीं पर चोट मारी जा रही है। |
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कंधे पर किसी का हाथ ही काफी है , दूर हो या पास क्या फर्क पड़ता है , अनमोल रिश्तों का तो बस एहसास ही काफी है। |
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चंद कदम साथ चले थे, आंख खुली तो ख्वाब था। |
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माना के दूरियां कुछ बढ़ सी गई है, मगर तेरे हिस्से का वक्त आज भी तनहा रखा है मैंने। |
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मन ना मिला तो कैसा नाता, चला अकेला ठोकर खाता, जितने थे झूठे वादे थे, सुख पर बिके सभी प्यादे थे, जाने क्यों मैं समझ ना पाया, जग के नियम बड़े सादे थे, अपना ही मैं स्वर दोहराता, चला अकेला ठोकर खाता, फिर तो जो बाधाएं आई, आगे बढ़कर मैंने गले लगाई, उतना ही मैं कुशल हो गया, जितनी मैंने असफलताएं पाई, अपने घाव स्वयं सहलाता, |
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