Hindi Poem Part-5 - Shadi Ke Bad

हिंदी कविता - शादी के बाद



        शादी के बाद अभी शादी का पहला ही साल था , ख़ुशी के मारे मेरा बुरा हाल था ,
        खुशियां कुछ यूँ उमड़ रही थी, कि संभाले नहीं संभाल रही थी

        सुबह - सुबह मैडम का चाय लेकर आना, थोड़ा शर्माते हुए हमे नींद से जगाना ,
        वो प्यार भरा हाथ हमारे बालों में फिराना , और मुस्कराते हुए कहना , डार्लिंग चाय तो पी लो

        जल्दी से रेडी हो जाओ , आपको ऑफिस भी जाना है। घरवाली भगवन का रूप लेकर आई थी ,
        दिल और दिमाग पे पूरी तरह से छाई थी, साँस भी लेते थे तो नाम उसी का होता था ,
        इक पल भी दूर जाना मुश्किल होता था।

5 साल बाद
        सुबह - सुबह मैडम का चाय लेकर आना , टेबल पर रखके जोर से चिलाना ,
        आज ऑफिस जाओ तो मुन्ना को स्कूल छोड़ते हुए जाना।

        सुनो , एक बार फिर वही आवाज आई , क्या बात है अभी छोड़ी नहीं चारपाई ,
        यदि मुन्ना लेट हो गया तो देख लेना , टीचर्स को फिर खुद ही संभाल लेना।

        ना जाने अब घरवाली केसा रूप लेकर आई थी, दिल और दिमाग पर काली घटा सी छाई थी ,
        साँस भी लेते हैं तो अब उन्ही का ख्याल होता है। अब हर समय जेहन में एक ही सवाल होता है ,

        क्या कभी वो दिन लौट के आएंगे ,  हम एक बार फिर कुँवारे हो जायेंगे ।
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दोस्ती

अचानक ज़िन्दगी में कभी, एक अजनान सा शख्स आता है...

जो दोस्त भी नहीं, हमसफर भी नहीं, फिर भी दिल को बहुत बहुत भाता है

ढेरों बातें होती हैं उस से, हजारों दुख सुख भी बांटते हैं,

जो बातें किसी से नहीं करते थे, वो भी हम उस से करते हैं

है तो वो अजनबी  सा, पर दिल को बहुत भाता है

जाना पहचाना सा लगता है... कोई रिश्ता नहीं है उससे,

फिर भी उसकी हर बात मानने को  दिल करता है...

कोई हक़ नहीं है उस पर हमारा फिर भी उस पर हक़ जताना हमको अच्छा लगता है...

जब कुछ भी सुनने का मन ना हो तब भी, उसको सुनना अच्छा लगता है!

दोस्ती है ऐसा रिश्ता जो पुरुष और महिला किसी भी रूप में मिल सकता है..

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दो पोटली 

एक बार भगवान ने जब इंसान की रचना की तो उसे दो पोटली दी। कहा एक पोटली को आगे की तरफ लटकाना और दूसरी को कंधे के पीछे पीठ पर। आदमी दोनों पोटलियां लेकर चल पड़ा।

हां, भगवान ने उसे ये भी कहा था कि आगे वाली पोटली पर नजर रखना पीछे वाली पर नहीं। समय बीतता गया। वह आदमी आगे वाली पोटली पर बराबर नजर रखता। आगे वाली पोटली में उसकी कमियां थीं और पीछे वाली में दुनिया की।

वे अपनी कमियां सुधारता गया और तरक्की करता गया। पीछे वाली पोटली को इसने नजरंदाज कर रखा था। एक दिन तालाब में नहाने के पश्चात, दोनों पोटलियां अदल बदल हो गई। आगे वाली पीछे और पीछे वाली आगे आ गई।

अब उसे दुनिया की कमियां ही कमियां नजर आने लगी। ये ठीक नहीं, वो ठीक नहीं। बच्चे ठीक नहीं, पड़ोसी बेकार है, सरकार निक्कमी है आदि-आदि। अब वह खुद के अलावा सब में कमियां ढूंढने लगा।

परिणाम ये हुआ कि कोई नहीं सुधरा,पर उसका पतन होने लगा। वह चक्कर में पड़ गया कि ये क्या हुआ है? वो वापस भगवान के पास गया।भगवान ने उसे समझाया कि जब तक तेरी नजर अपनी कमियों पर थी,तू तरक्की कर रहा था।जैसे ही तूने दूसरों में मीन-मेख निकालने शुरू कर दिए, वहीं से तेरा पतन शुरू हो गया।

शिक्षा: हकीकत यही है कि हम किसी को नहीं सुधार सकते, हम अपने आपको सुधार लें इसी में हमारा कल्याण है। हम सुधरेंगे तो जग सुधरेगा। हम यही सोचते हैं कि सबको ठीक करके ही शांति प्राप्त होगी,जबकि खुद को ठीक नहीं करते 

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