Hindi Poem Part 4

Hindi Poem Part 4 जिंदगी का सफर( कविता) आगे सफर था, तो पीछे हमसफ़र था। रुकते तो सफर छूट जाता, और चलते तो हमसफ़र छूट जाता। मंजिल की भी हसरत थी, और उनसे भी मुहब्बत थी। चलते तो बिछुड़ जाते, और रुकते तो बिखर जाते। यूँ समझ लो के, प्यास लगी थी गजब की मगर पानी में जहर था। पीते तो मर जाते, और न पीते तो भी मर जाते। बस दो मसले जिंदगी भर न हल हुए। न नींद पूरी हुई और न खाब मुकमल हुए। वक़्त ने कहा के काश थोड़ा और सब्र होता। और सब्र ने कहा के काश थोड़ा और वक़्त होता। सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब, आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर। हुनर सड़कों पर तमाशा करता है, और किश्मत महलों में राज करती है। शिकायत तो बहुत है तुझसे ऐ जिंदगी, पर चुप इसलिए हूँ कि, जो दिया तूने वो भी बहुतों को नसीब नहीं होता। अजीब सौदागर है ये वक़्त भी, जवानी का लालच देकर बचपन ले गया और अब अमीरी का लालच देकर जवानी ले गया। लौट आता हूँ रोज़ घर की तरफ थका हरा। पर आज तक समझ नहीं आया के जीने के लिए कमाता हूँ या कमाने के लिए जीता हूँ। बचपन में सबसे ज्यादा बार पूछा गया सवाल, कि बड़े होकर क्या बनना है। जबाब अब मिला है, कि फिरसे बच...