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Hindi Poems Part 1

हिंदी कविताएँ पार्ट  - 1
उपदेश वाचक सुंन्दर हिंदी कविताएँ, जैसे , धरती का नूर , दोष लगाना मत सीखो , सजा , कोई-कोई , हकीकत , मुकदर 




धरती का नूर 
चिड़ियों को किस खौफ ने सताया ,
 क्यों आज इनका  दिल घबराया ?
क्या खता है इनकी , जो सजा इन्होंने पाई है ,
आसमां पर भी क्या नहीं कोई इनकी सुनवाई है ?

मानव क्यों दानव बन गया है ,
 क्यों इसने धरती पर हलचल सी मचाइ  है ?
बेनूर हो रहा धरती का नूर ,
कुदरत से मानव हो रहा है दूर। 

काफिले को अपने खुद ही जला रहा है ,
बर्बादी का नगाड़ा खुद ही बजा रहा है। 
कायनात से खिलवाड़ के ख्यालात इसे  आते हैं कैसे 
फिजाओं से रिश्ते इसने बनाये हैं कैसे ?

किस पथ पर चल पड़ा है ये ,
क्यों हरियाली से मुँह मोड़ रहा है ये ,
गुजारिश है इस कलम की सबसे ,
आओ सब रल मिल पेड़ लगाएं ,

धरती पर हरियाली का स्वर्ग बनाएं। 

दोष लगाना मत सीखो

लगा सको तो बाग़ लगाना , आग लगाना मत सीखो।

बिछा सको तो फूल बिछाना, शूल बिछाना मत सीखो।

पिला  सको तो अमृत पिलाना , जहर पिलाना मत सीखो।

जला सको तो दीप  जलाना , दिल जलाना मत सीखो।

बदल सको तो खुद को बदलो , दोष लगाना मत सीखो।


कोई - कोई

चढ़ते सूरज को सलाम  करते हैं सभी , 

पर छिपते को करता है कोई - कोई।

पत्थरों की पूजा करते हैं सभी, 

पर इन्सान की करता है कोई - कोई।

अमीरों को रोटी पूछते हैं सभी , 

पर भूखे को खिलता है कोई - कोई।

सुखों में  आया करती हैं दुनियां , 

पर दुःखो  में निभाता है कोई - कोई।

अमीरों को झुककर सलाम करते हैं सभी , 

पर गरीबों से आँख मिलता है कोई - कोई।

चलने वाले के साथ कदम मिलाती  है दुनियां , 

पर गिरते को उठता है कोई - कोई।


सज़ा 

मुझे जिंदगी भी मिली ऐसी ज्यों मिली हो सज़ा कोई।    

इसमें भी रही होगी मेरी ही खता  कोई।

खुशनशीब हैं वो जिन्हें  मिला हो चाँद जिंदगी मै।     

निभा न सका  मुझसे मेरे दुःखों  के सिवा कोई।

खाबों के फूलों से महक तो आती नहीं कभी।     

  जो खिलता है डाल  पर , महकता है फूल वही।

हम आये दुनियां में  किसी को कोई खबर नहीं।      

पत्थर पर लिखकर जैसे मिटा देता है निशां  कोई।

जाना है सभी को इस झूठी दुनिया से एक दिन।    

कोई करे याद बाद मरने के  होती है मौत वही।

हकीकत

बाज के हाथों राज है , गिद्द के सर पे ताज है।        

  जिंदगी तो जंग बनी है , शस्त्र ही उनके साज है।

कहां  ठहर गए कन्हैया , बहन की बचानी लाज है।  

डिग्रियां लेकर बैठे हैं , सिफारिश पे मिले काज है।

इंसाफ भी मिले कब यहां , बदमास ही सरताज है।  

  न कर  भरोसा परदेशी , हर शख्स यहां चालबाज है।

मुकदर

रात भर यादों का हसीं मंजर देखा , 

हुई सुबह तो वही टूटा  घर देखा।

वही ख़ामोशी थी फैली चारों  तरफ , 

वही तकिया वही बिस्तर देखा।

वीरानियाँ  ही नजर आई हर तरफ , 

हमने पलटकर जिधर देखा।

बहारों  के इंतजार में  सो गए थे हम , 

आँख खुली तो वही पतझड़ देखा।

अजनबी सा लगा  कुछ पल घर अपना, 

देखते ही रह गए बस जिधर देखा।

गम भरे पड़े हैं तेरे नसीब मैं ദിനേശ് , 

सच पूछो तो यारो हमने पहली दफा ऐसा मुकदद्ऱ  देखा। 

जीवन का सच

जीवन का उद्देश्य कर्म , कर्म का फल सुख।

सुख का अंत मृत्यु , मृत्यु का सच मोक्ष।

मोक्ष की राह पुण्य। 


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