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Anmol Vachan Part 17 In Sanskrit

संस्कृत श्लोकः

Best motivational and inspirational thoughts in sankrit language with hindi meaning. Useful shlok in sanksrit language for constructing charactor of growing students. 


असतो मा सद्गमय ।
तमसो मा ज्योतिर्गमय ।
मृत्योर्माऽमृतं गमय ॥

अर्थात :- हे ईश्वर मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो। मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो. मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।

अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलं।।

अर्थात :- बड़ों का अभिवादन करने वाले मनुष्य की और नित्यं वृद्धों की सेवा करने वाले मनुष्य के चार गुण बढ़ जाते हैं आयु, विद्या, यश और बल ।

अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम् |
अधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतः सुखम् ||

अर्थात:- आलसी को विद्या कहाँ अनपढ़ / मूर्ख को धन कहाँ निर्धन को मित्र कहाँ और अमित्र को सुख कहाँ |

उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।।

अर्थात :- व्यक्ति के मेहनत करने से ही उसके काम पूरे होते हैं। सिर्फ इच्छा करने से उसके काम पूरे नहीं होते। जैसे सोये हुए शेर के मुंह में हिरण स्वयं प्रवेश नहीं करता , उसके लिए शेर को परिश्रम करना पड़ता है।

अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् |
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ||

अर्थात :- यह मेरा है, यह पराया है ; ऐसी सोच संकुचित चित्त वोले व्यक्तियों की होती है; इसके विपरीत उदारचरित वाले लोगों के लिए तो यह सम्पूर्ण धरती ही एक परिवार जैसी होती है |

यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किं।
लोचनाभ्याम विहीनस्य, दर्पण:किं करिष्यति।।

अर्थात :- जिस व्यक्ति के पास स्वयं का विवेक नहीं है। शास्त्र उसका क्या करेगा? जैसे नेत्रहीन व्यक्ति के लिए दर्पण व्यर्थ है।

विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम्।।

अर्थात :- ज्ञान विनम्रता प्रदान करता है, विनम्रता से योग्यता आती है और योग्यता से धन प्राप्त होता है, जिससे व्यक्ति धर्म के कार्य करता है और सुखी रहता है।

न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि।
व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।।

अर्थात :- न चोर चुरा सकता है, न राजा छीन सकता है, न इसका भाइयों के बीच बंट वारा होता है और न ही संभलना कोई भर है। इसलिए खर्च करने से बढ़ने वाला विद्या रुपी धन, सभी धनों से श्रेष्ठ है।

गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।

अर्थात :- गुरू ही ब्रह्मा हैं, गुरू ही विष्णु हैं, गुरू ही शंकर है, गुरू ही साक्षात परमब्रह्म हैं। ऐसे गुरू का मैं नमन करता हूं।

माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः।
न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा।।

अर्थात :- जो माता पिता अपने बच्चो को शिक्षा से वंचित रखते हैं, ऐसे माँ बाप बच्चो के शत्रु के समान है। विद्वानों की सभा में अनपढ़ व्यक्ति कभी सम्मान नहीं पा सकता वह हंसो के बीच एक बगुले के समान है।

न कश्चित कस्यचित मित्रं, न कश्चित कस्यचित रिपु:।
व्यवहारेण जायन्ते, मित्राणि रिप्वस्तथा।।

अर्थात :- न कोई किसी का मित्र होता है। न कोई किसी का शत्रु। व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं।

बलवानप्यशक्तोऽसौ धनवानपि निर्धनः |
श्रुतवानपि मूर्खोऽसौ यो धर्मविमुखो जनः ||

अर्थात :- जो व्यक्ति धर्म ( कर्तव्य ) से विमुख होता है वह ( व्यक्ति ) बलवान् हो कर भी असमर्थ, धनवान् हो कर भी निर्धन तथा ज्ञानी हो कर भी मूर्ख होता है |

चन्दनं शीतलं लोके,चन्दनादपि चन्द्रमाः |
चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः ||

अर्थात :- संसार में चन्दन को शीतल माना जाता है लेकिन चन्द्रमा चन्दन से भी शीतल होता है | अच्छे मित्रों का साथ चन्द्र और चन्दन दोनों की तुलना में अधिक शीतलता देने वाला होता है |


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